5 sentences about Dussehra in
इस दिन शमी वृक्ष का पूजन भी किया जाता है शमी वृक्ष के बारे में यह कहा जाता है कि दुर्योधन ने जब पांडवों को जुए में हराकर 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास की सजा सुनाई तब अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर ही छुपाया था और खुदा वृहन्नला (किन्नर) बनकर राजा विराट के यहां दास बन गया था अर्जुन ने शमी वृक्ष से धनुष उतार कर ही शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस दिन शमी पूजन का विधान है।
जनश्रुति के अनुसार इस घटना के बाद जब भी राजा जगत सिंह भोजन करने बैठता उन्हें अपनी थाली में कीड़े रेंगते नजर आते राजा इस घटना से घबरा गए उन्होंने राजगुरु कृष्ण दास की शरण ली गुरु कृष्ण दास ने राजा को उसकी भूल का एहसास कराया और कहा कि अब तभी इस पाप से मुक्ति मिल सकती है जब अयोध्या से श्री रघुनाथ जी की मूर्ति जहां लाकर प्रतिष्ठा की जाए राजा ने ऐसा ही किया इस अवसर पर श्री रघुनाथ जी के स्वागत के लिए कुल्लू घाटी के सभी देवता नगर में पधारे। कुल्लू के ढालपुर मैदान में सभी देवताओं की एक साथ उपस्थिति एक उत्सव में बदल गई और यह उत्सव बाद में कुल्लू दशहरा के आयोजन के रूप में परिवर्तित हो गया।
मैसूर व बस्तर का भव्य दशहरा वैसे तो दशहरा पूरे भारत का त्यौहार है लेकिन प्रथम स्थान पर मैसूर का दशहरा इतिहास बताता है कि मैसूर के भव्य दशहरे का प्रारंभ विजय नगर साम्राज्य से हुआ विजय नगर के शक्तिशाली शासक अपने अधीनस्थ को दशहरे के दिन पूरे दल - बल के साथ उपस्थित होने का आदेश देते थे और तीन चार महीने की यात्रा के बाद दूरदराज के क्षेत्रों के सभी राजा अपने साथ लगभग हजार हाथियों को संवारकर उन पर सोने का सौदा लगाकर पहुंचे थे और तब इस शानदार दल बल के साथ मां चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती थी तथा जुलूस निकाला जाता था मैसूर में वर्तमान भव्य दशहरे की शुरुआत 1969 में वडियारों ने की थी। इस समय से दशहरा राजाओं का त्योहार ना होकर जन-जन का त्यौहार बन गया फिलहाल हजारों हाथियों को सजा कर उन पर सोने का हौदा सजाने के बजाय सबसे आगे वाले हाथी पर सोने का हौदा का होदा सजाया जाता है जिसका भजन 750 किलोग्राम है इस पर ही देवी चामुंडेश्वरी की सवारी निकाली जाती है।
दशहरे के संदर्भ में दूसरा प्रसिद्ध स्थान है बस्तर कहा जाता है कि पुरुषोत्तम देव महाराज ने जगन्नाथपुरी जाकर भगवान की सेवा की और श्रद्धा अनुसार रतन चढ़ाई वहीं से वे रथ पति की उपाधि लेकर लौटे तभी से दशहरा मनाने की शुरुआत हुई। बस्तर में दशहरे की तैयारी श्रावण अगस्त से ही शुरू हो जाती है जहां दशहरे के लिए खास तौर पर लकड़ी का एक विशाल रथ बनाया जाता है इस रथ पर दंतेश्वरी का छत्र लेकर पुजारी बैठता है जहां बस्तर के निवासी और राजाओं के वंशज देवी की डोली का स्वागत करते हैं इस अवसर पर महार जाति की कुंवारी कन्या को कांटों की सेज पर बैठाने का रिवाज है। ऐसा माना जाता है कि काघन देवी इस कन्या पर सवार होकर दशहरा मनाने की अनुमति देती है इसीलिए इसे कालीन गादी कहते हैं आशिवन शुल्क त्रयोदशी को माता की विदाई होती है।
विजयादशमी या दशहरा प्रतिवर्ष आशिवन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु के आगमन का सूचक है दशहरा क्षत्रियों का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है, क्योंकि इसी दिन वह अपने शस्त्रों का पूजन करते हैं ताकि हमेशा शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकें।
5 Lines on Dussehra in Hindi for class 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10th students
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- दशहरा दिवाली से 20 दिन पहले मनाया जाता है .
- इस दिन रावण का वध किया था श्री राम जी ने .
- इस दिन रावण का पुतला जलाया जाता है
- दशहरा का अर्थ है दस सिरों वाला रावण
- दशहरा के दिन राम लीला का आखरी दिन होता है
Dussehra essay in Hindi
अनेक स्थानों पर दशहरे के कुछ दिन पूर्व से रामलीला शुरू हो जाती है और दशहरे के दिन सूर्यास्त के समय बुराई के प्रतीक रावण कुंभकर्ण तथा मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है इस दिन श्री राम ने रावण को मारकर लंका विजय की थी इसीलिए इसे विजयदशमी कहा जाता है क्योंकि रावण के 10 सिर थे इसलिए यह दशहरा के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।
क्यों की जाती है शमी वृक्ष की पूजा :
आशिवन दसवीं को संध्या काल और रात्रि के बीच का समय विजय काल कहलाता है इसलिए बुराई के नाश के लिए इसी समय रावण दहन किया जाता है इस दिन लोग अपने घरों की सफाई कर के दरवाजों पर फूलों की बंदनवार सजाते हैं रावण दहन के लिए जाते समय स्त्रियां पुरुषों के माथे पर तिलक लगाती है देवताओं के पूजन के बाद सभी एक दूसरे को शमी की पत्तियां देकर गले मिलते हैं और आपसी प्रेम बढ़ाने एवं मंगल की कामना करते हैं।
इस दिन शमी वृक्ष का पूजन भी किया जाता है शमी वृक्ष के बारे में यह कहा जाता है कि दुर्योधन ने जब पांडवों को जुए में हराकर 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास की सजा सुनाई तब अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर ही छुपाया था और खुदा वृहन्नला (किन्नर) बनकर राजा विराट के यहां दास बन गया था अर्जुन ने शमी वृक्ष से धनुष उतार कर ही शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस दिन शमी पूजन का विधान है।
कई जगह रावण दहन के बाद लोग एक दूसरे को शमी सोनपत्ति देकर गले मिलते हैं तथा एक दूसरे को बधाइयां देते हैं सोनपत्ति को देने के बारे में मान्यता है कि रावण वध के बाद लंका के नए राजा विभीषण ने वहां का सारा सोना लोगों में बांट दिया था।
कैसे हुई कुल्लू दशहरा मनाने की शुरुआत?
विश्वविख्यात कुल्लू दशहरा उत्सव की शुरुआत कैसे हुई इस विषय में एक रोचक किंबदंती प्रसिद्ध है कहा जाता है कि कुल्लू दशहरा का शुभारंभ 17 वीं शताब्दी में राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ के इस घाटी में आगमन के उपलक्ष में किया था लोग मानते हैं कि राजा जगत सिंह जहां प्रजा प्रेमी और धर्मवीर था वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी के वह कान का कच्चा था और असंभव बात पर भी सहज ही विश्वास कर लेता था उसके दरबारी अपने शासकीय कमजोरी का लाभ उठाते और कुटिललता युक्त साजिश रच कर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते।
इसी तरह एक दिन किसी दरबारी ने एक ब्राह्मण से बदला लेने के लिए उसके बारे में राजा को गलत सूचना दे दी कि अमुक गांव में दुर्गा दत्त नाम क ब्राह्मण के पास ढेरों सच्चे मोती है बिना जांच-पड़ताल किए राजा जगत सिंह ने अपने सैनिकों को उक्त ब्राह्मणों से सच्चे मोती लाने का आदेश दे दिया। राजा के आदेश अनुसार सैनिकों ने दुर्गादत्त के घर की तलाशी ली परंतु मोती नहीं मिले स्वाभिमानी दुर्गा ईश्वर अपमानजनक व्यवहार को नहीं सह सका और सैनिकों के चले जाने के बाद खुद को सपरिवार झोपड़े में बंद करके आग लगा ली देखते ही देखते एक निर्दोष परिवार आग में जलकर राख हो गया।
जनश्रुति के अनुसार इस घटना के बाद जब भी राजा जगत सिंह भोजन करने बैठता उन्हें अपनी थाली में कीड़े रेंगते नजर आते राजा इस घटना से घबरा गए उन्होंने राजगुरु कृष्ण दास की शरण ली गुरु कृष्ण दास ने राजा को उसकी भूल का एहसास कराया और कहा कि अब तभी इस पाप से मुक्ति मिल सकती है जब अयोध्या से श्री रघुनाथ जी की मूर्ति जहां लाकर प्रतिष्ठा की जाए राजा ने ऐसा ही किया इस अवसर पर श्री रघुनाथ जी के स्वागत के लिए कुल्लू घाटी के सभी देवता नगर में पधारे। कुल्लू के ढालपुर मैदान में सभी देवताओं की एक साथ उपस्थिति एक उत्सव में बदल गई और यह उत्सव बाद में कुल्लू दशहरा के आयोजन के रूप में परिवर्तित हो गया।
मैसूर व बस्तर का भव्य दशहरा वैसे तो दशहरा पूरे भारत का त्यौहार है लेकिन प्रथम स्थान पर मैसूर का दशहरा इतिहास बताता है कि मैसूर के भव्य दशहरे का प्रारंभ विजय नगर साम्राज्य से हुआ विजय नगर के शक्तिशाली शासक अपने अधीनस्थ को दशहरे के दिन पूरे दल - बल के साथ उपस्थित होने का आदेश देते थे और तीन चार महीने की यात्रा के बाद दूरदराज के क्षेत्रों के सभी राजा अपने साथ लगभग हजार हाथियों को संवारकर उन पर सोने का सौदा लगाकर पहुंचे थे और तब इस शानदार दल बल के साथ मां चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती थी तथा जुलूस निकाला जाता था मैसूर में वर्तमान भव्य दशहरे की शुरुआत 1969 में वडियारों ने की थी। इस समय से दशहरा राजाओं का त्योहार ना होकर जन-जन का त्यौहार बन गया फिलहाल हजारों हाथियों को सजा कर उन पर सोने का हौदा सजाने के बजाय सबसे आगे वाले हाथी पर सोने का हौदा का होदा सजाया जाता है जिसका भजन 750 किलोग्राम है इस पर ही देवी चामुंडेश्वरी की सवारी निकाली जाती है।
दशहरे के संदर्भ में दूसरा प्रसिद्ध स्थान है बस्तर कहा जाता है कि पुरुषोत्तम देव महाराज ने जगन्नाथपुरी जाकर भगवान की सेवा की और श्रद्धा अनुसार रतन चढ़ाई वहीं से वे रथ पति की उपाधि लेकर लौटे तभी से दशहरा मनाने की शुरुआत हुई। बस्तर में दशहरे की तैयारी श्रावण अगस्त से ही शुरू हो जाती है जहां दशहरे के लिए खास तौर पर लकड़ी का एक विशाल रथ बनाया जाता है इस रथ पर दंतेश्वरी का छत्र लेकर पुजारी बैठता है जहां बस्तर के निवासी और राजाओं के वंशज देवी की डोली का स्वागत करते हैं इस अवसर पर महार जाति की कुंवारी कन्या को कांटों की सेज पर बैठाने का रिवाज है। ऐसा माना जाता है कि काघन देवी इस कन्या पर सवार होकर दशहरा मनाने की अनुमति देती है इसीलिए इसे कालीन गादी कहते हैं आशिवन शुल्क त्रयोदशी को माता की विदाई होती है।
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