Wednesday, March 13, 2019

Paryavaran Pradushan Essay in Hindi | पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध


Paryavaran Pradushan Essay in Hindi - पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 

पूरे विश्व भर में आज बिगड़ते पर्यावरण के हालात पर चर्चाएं हो रही है विकसित देशों जा विकास इन सभी का चिंतन है पृथ्वीवायु और जल में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए ठोस और स्थाई उपाय जरूरी हैं वैसे मौसमी बदलाव के लिए प्राकृतिक और मानव जनित दोनों तरह के अनेक कारण है परंतु हमें औद्योगिकरण, शहरीकरण के प्रति गंभीरता से सोचना होगा। जंगल भूमि और जल के प्राकृतिक संसाधनों में मानवीय दखल को रोकना होगा अपने आचरण और दिनचर्या में बदलाव लाकर हमें प्राकृतिक संसाधनों को खत्म होने से बचाना होगा तभी हम वनस्पति फल अनाज और जल की आपूर्ति, आबादी के अनुरूप करने में समर्थ हो सकेंगे।

प्रकृति मानव जीवन के लिए सभी तरह की चीजों को उपलब्ध करवाता है जो हमारे जीने लायक जरूरी होती है। आज संसार भर में जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है जिससे प्राकृतिक संपदायें धीरे धीरे खत्म होती जा रही है भूमंडल पर जीवन का सफर भी धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है ।


विश्व पर्यावरण दिवस जून
विश्वपर्यावरण दिवस जून को हर साल हमें इस बात का मौका देता है कि हम देखें समझें और जाने के प्रकृति के संरक्षण में हर व्यक्ति परिवार गांव गांव शहर जाति, राज्य, देश और समूचे विश्व की क्या भूमिका है। सारी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है इस दिन सरकारी स्वयंसेवी संस्थान और पर्यावरण के प्रति जागरूक लोगों का स्टॉकहोमहेलसिंकीलंदनविएना क्योटो जैसे सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों और रियो घोषणा पत्रसंयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम आदि को याद करते हैं। पर्यावरण दिवस पर मेले प्रतियोगिताएं आदि का आयोजन किया जाता है जिसमें पिछले प्रयासों का लेखा-जोखा अधूरे कामों पर चिंता और समाज को जागरूक करने के लिए नए कार्यक्रमों की दवाई दी जाती है और फिर मामला ढाक के तीन पात हो जाता है। सरकारी सत्र पर यह जलसे इसलिए होते हैं कि साल 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र ने एक सम्मेलन कराया था और यह तय किया था के अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण चेतना और पर्यावरण आंदोलन के लिए हर साल यह दिवस से मनाया जाए ताकि समकालीन पीढ़ियों को धरती पर पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का पता चल सके और उस से निदान दिलाया  जा सके।


भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसी सम्मेलन में कहा था कि गरीबी ही सबसे बड़ा प्रदूषण है उनका कहना था कि विकासशील देशों की पर्यावरणीय समस्याओं का संबंध गरीबी है वह बताना चाहती थी के विषय में संसाधनों और संपत्तियों के असमान वितरण से विकासशील देश तेजी से आगे बढ़ना चाहेंगे नतीजा प्रकृति के दोहन के रूप में सामने आएगा अगर इसे रोकना है तो संसाधनों का समान बंटवारा ना केवल देशों के स्तर पर बल्कि व्यक्तियों के स्तर पर भी होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने उनके इस विचार को टिकाऊ विकास की अवधारणा में शामिल कर लिया यह अवधारणा बताती है कि वही विकास टिकाऊ हो सकता है जो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों दोनों में असमानता को दूर करें स्टॉकहोम सम्मेलन से हुआ यह के पर्यावरणीय चिंताएं अंतरराष्ट्रीय मंचों का महत्वपूर्ण हिस्सा हो गई और राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों ने पर्यावरणीय समस्याओं को कम ज्यादा सही समझा और उसके निपटारे के लिए प्रयास किए जाने लगे।


स्टॉकहोम सम्मेलन में पर्यावरणीय चेतना लाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला चार मुख्य उद्देश्यों को सामने रखकर किया जिसमें पहला था पर्यावरणीय समस्याओं को मानवीय चेहरा प्रदान करना दूसरा लोगों को टिकाऊ  और समतापूर्ण विकास का कर्ताधर्ता बनाना और इसके लिए उनके ही हाथों में असली सत्ता सौंपना, तीसरा इस धारणा को बढ़ावा देना था के पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति लोक अभिरुचिओं को बदलने में समुदाय की केंद्रीय भूमिका होती है और चौथे उद्देश्य में विभिन्न देशों उद्योगों संस्थाओं और व्यक्तियों की साझेदारी को बढ़ावा देना शामिल था ताकि सभी देश और समुदाय तथा सभी पीढियां सुरक्षित और उत्पादनशील पर्यावरण का आनंद उठा सकें तभी से यह  प्रयास जारी है हमारे लिए यह गौरव की बात है कि इस साल भारत विश्व पर्यावरण दिवस 2018 पर आयोजित हो रहे अंतरराष्ट्रीय समारोह की मेजबानी कर रहा है जिसका विषय है प्लास्टिक प्रदूषण को हराना। वाकई प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े तथ्यों को देखें तो तस्वीर कुछ जो उभरती है हर वर्ष पूरी दुनिया में 500 अरब  प्लास्टिक बैगों का उपयोग किया जाता है हर वर्ष से कम से कम मिलियन टन प्लास्टिक का महासागरों में पहुंचता है जो प्रति मिनट कूड़े से भरे ट्रक के बराबर है पिछले एक दशक के दौरान उत्पादित किए गए प्लास्टिक की मात्रा पिछली एक शताब्दी के दौरान उत्पादित की गई प्लास्टिक की मात्रा से अधिक थी हमारे द्वारा प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक में से 50% प्लास्टिक का सिर्फ एक बार उपयोग होता है हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती है और हमारे द्वारा उत्पन्न किए गए कचरे में 10% योगदान प्लास्टिक का है।

"Environment Day Essay in Hindi 1000 words" 
भारत को यह मौका प्रकृति से अपने लगाव के चलते मिला जैसा के संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण मामलों के अध्यक्ष एरिक सोलहाईम ने कहा था संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर की सरकारों से उद्योग जगत से समुदाय और सभी लोगों से आग्रह करता है कि वह साथ मिलकर प्लास्टिक कचरे का स्थाई विकल्प खोजो और एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को जल्द से जल्द रोके क्योंकि यह हमारे महानगरों को प्रदूषित कर रहा है समुद्री जीव को नष्ट कर रहा है और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन का तर्क था कि भारतीय दर्शन और जीवनशैली हमेशा से प्रकृति के साथ सहअस्तित्व के सिंद्धात पर केंद्रित हो रही है और हम पृथ्वी ग्रह को अधिक साफ सुथरा और हरा भरा बनाने के लिए प्रतिबद्ध है भारत में जलवायु परिवर्तन और कम कार्बन बाली अर्थव्यवस्था की ओर रुझान की जरूरत के मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व का प्रदर्शन किया है और अब भारत प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने की दिशा में मदद कर रहा है प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया भर के लिए संकट अपूर्ण है और जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है यह हमारे पीने के पानी में और हमारे भोजन में मौजूद है यह हमारे समुद्र तटों और महासागरों को नष्ट कर रहा है हमारे महासागरों और ग्रह को बचाने के लिए जोर लगाने का बीड़ा अब भारत के पास है उन्होंने यह भी कहा है हरियाली की सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए अगर हर कोई प्रतिदिन हरियाली से जुड़ा कम से कम एक अच्छा काम भी करता है तो अपने ग्रह पर है यह रैली के और वो अच्छे कार्य होंगे भारत सरकार ने विश्व पर्यावरण दिवस से पहले ही संपूर्ण भारत में सार्वजनिक जगह राष्ट्रीय उद्द्यानों और जंगलों से प्लास्टिक की सफाई और साथ ही साथ समुद्र तटों की सफाई की शुरुआत कर दी थी।


पर क्या इतना काफी है धरती मां आज कराह रही है। ऐस धरा पर उनकी सबसे बौद्धिक प्रजाति इंसान में उनका कबाड़ा कर दिया है। यह क्रम बदसूरत जारी है विकास के नाम पर बर्बादी की इस इमारत में तमाम कोशिशों के बावजूद कोई खास बदलाव नहीं आया है। सभ्यताओं के विकास में प्रकृति से हमारा लगाव तो छीना ही है हमारे अपने अपने स्वार्थ ने दिनों दिन पर्यावरण और मनुष्य के बीच की खाई को बढ़ाया ही आज अपनी हर सांस के साथ हम प्रकृति से खिलवाड़ करते दिखते हैं हरियालीधरतीहवा पानी और आसमान के बाद आप अंतरिक्ष तक में हमारा दखल प्रदूषण का वह बढ़ावा है जिसमें कोई निस्तार फिलहाल नहीं दिखता कहने को हम आगे बढ़ रहे हैं पर ध्यान से देखें समझे तो हकीकत कुछ और ही है आलम यह है कि बिना तेज आवाज के हम सुन नहीं पाते बिना बिजली और पंखे के रहना मुश्किल बिना ट्यूबलाइट और बल्लभ के रातों को देखना बंद है बिना बाइक और कार के चलना मुश्किल और तो और बिना केलकुलेटर के अब हम गुणा गणित नहीं कर पाते और अब तो टेलीफोन के नंबर भी हमें याद नहीं रहते तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि संसाधनों ने हमें अक्षम बना दिया है और सुविधा के नाम पर हम उसी तरह अकर्मण्य हो रहे हैं, जैसे तरक्की के नाम पर हमने धरती को बेबस बना रखा है और उसका दोहन जारी है क्या हमारे विकास का एक भी अंश धरती के बिना संभव है ? अगर नहीं तो फिर हम इस धरती की रक्षा उसके पर्यावरण के बचाव और अंत: इस पर जीवन की ररक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? – जय प्रकश पाण्डेय



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