Friday, January 4, 2019

Poem on Forest in Hindi | जंगल पर कविता

Poem on Forest in Hindi | जंगल पर कविता 


Poem on Forest in Hindi


में अपने भीतर छोड़ आयी 
एक पूरा भरा जंगल 
जहां तहां रोड़ा बनते 
वृक्ष विस्तार लिए 
कटे ठूंठ 

सूखे पत्तों का शोर 
शिकारी की मचान 
रोबदार शब्दों की चुभन 
जड़ों का रोना 

रोम विहीन त्वचा पर 
अमर बेल सा 
नहीं लिपटना अब 
जंगल थे 
जंगल ही रह गए तुम 


मैं कोई वन देवी नहीं 
हाड -मांस का टुकड़ा भी नहीं 
एक ह्रदय पिंड हूं 
जो सिर्फ साँसे ही नहीं भर्ती 
हंस भी सकती है 
नाच भी सकती है 
चीख भी सकती है 
और अब गुर्रा भी सकती है। 

Thanks : मीता दास 

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