10 Sentences about Pandit Jawaharlal Nehru in Hindi किसी व्यक्ति की देशभक्ति का अनुमान उसकी इच्छा से लगाया जा सकता है और यदि कोई व्यक्ति मरने के बाद भी अपने देश के ज़रे-ज़रे मे समा जाने की इच्छा रखता हो, तो उसके बारे में नि:सन्देह यह कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति एक महान् देशभक्त है। ऐसे ही एक महान् देशभक्त थे-पं. जवाहरलाल नेहरू। उन्होंने न केवल देश के स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका अदा की थी, बल्कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में देश का नेतृत्व करते हुए इसे विकास के पथ पर अग्रसर करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे अपने देश से कितना प्रेम करते थे, इसका अनुमान उनकी आत्मकथा में प्रकाशित उनके विचारों से होता है। उन्होंने लिखा था-"मैं चाहता हूँ कि मेरी भस्म का शेष भाग उन खेतों में बिखेर दिया जाए, जहाँ भारत के किसान कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि वह भारत की धूल और मिट्टी में मिलकर भारत का ही अभिन्न अंग बन जाए।
5 Lines on Pandit Jawaharlal Nehru in Hindi for class ,1,2,3,4,5,6,7,8,9,10th students
जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में उनके पैतृक घर आनन्द भवन में हुआ था।
उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध एवं धनाढ्य वकील थे।
उनकी माताजी का नाम स्वरूप रानी नेहरू था। समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उनका लालन-पालन शाही तरीके से हुआ था।
उन्हें विश्व के बेहतरीन शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ, किन्तु उनकी आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी तथा आयरिश और बेल्जियन शिक्षक फर्डिनैण्ड ब्रुक्स का उन पर काफ़ी प्रभाव पड़ा।
उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध एवं धनाढ्य वकील थे।
उनकी माताजी का नाम स्वरूप रानी नेहरू था। समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उनका लालन-पालन शाही तरीके से हुआ था।
उन्हें विश्व के बेहतरीन शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ, किन्तु उनकी आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी तथा आयरिश और बेल्जियन शिक्षक फर्डिनैण्ड ब्रुक्स का उन पर काफ़ी प्रभाव पड़ा।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लन्दन के हैरो स्कूल से पूरी की, उसके बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने लन्दन के ही ट्रिनिटी कॉलेज से पूरी की।
वहाँ उन्होंने प्रकृति विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उनके विषय रसायन शास्त्र, भूगर्भ विद्या तथा वनस्पति शास्त्र थे। कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद कानून में करियर बनाने के दृष्टिकोण से उन्होंने लन्दन के विश्वप्रसिद्ध कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री प्राप्त की।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे वर्ष 1912 में भारत लौटे और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। वर्ष 1916 में उनका विवाह कमला नेहरू से हुआ। वर्ष 1916 में नेहरू लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए। वर्ष 1917 में जवाहरलाल नेहरू होमरूल लीग में शामिल हो गए। वर्ष 1919 में रौलेट एक्ट के विरोध में जब महात्मा गांधी ने एक अभियान शुरू किया, तब नेहरू जी उनके सम्पर्क में आए। गांधीजी के व्यक्तित्व एवं विचारधारा का नहरू जी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने वकालत छोड़ दी और स्वतन्त्रता संग्राम में उनके साथ हो गए।
गांधीजी के प्रभाव से ही उन्होंने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को त्यागकर खादी कुर्ता एवं गाँधी टोपी धारण करना शुरू किया। जब वर्ष 1920-22 में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन का बिगुल बजाया, तो इसमे नेहरू जी ने अपनी सक्रिय भूमिका नभाई। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वर्ष 1924 में वे इलाहाबाद नगर निगम अध्यक्ष निर्वाचित हए तथा इस पद पर दो वर्षों तक बने रहे। इसके बाद वर्ष 1926 में ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग कमी का हवाला देकर उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया।
वर्ष 1926 से 1928 तक जवाहरलाल नेहरू भारतीय काग्रेस समिति के महासचिव रहे। दिसम्बर, 1929 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया, जिसमें जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हए। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया तथा 26 जनवरी, 1930 स्वतन्त्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इस दिन लाहौर में स्वतन्त्रता दिवस मनाते हुए नेहरू जी ने भारतीय झण्डा फहराया
स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान नेहरू कुल 9 बार कारावास गए।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अध्यारोपित होने के बाद जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में रात में चुनाव करवाए, तो नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगभग सभी प्रान्तों में अपनी सरकार का गठन किया एवं केन्द्रीय असेम्बली में भी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। वर्ष 1939 में भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्वयुद्ध में भेजने के ब्रिटिश सरकार के निर्णय के खिलाफ़ नेहरू जी ने केन्द्रीय असेम्बली भंग कर दी। कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार किए जाने के संविधान सभा के निर्माण के लिए जुलाई, 1946 में हए चुनाव में कांग्रेस ने नेहरू जी के नेतृत्व में 214 स्थानों में से स्थानों पर जीत हासिल की। इसके बाद नेहरू जी के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार का गठन 2 सितम्बर, 1946 को हुआ
15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्र हुआ, तो वे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री बने। इसके बाद लगातार तीन चुनावों वर्ष 1952, 1957 एवं 1962 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने बहुमत से सरकार बनाई और तीनों बार वे प्रधान बने। प्रधानमन्त्री के रूप में उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश के विकास के लिए उन्होंने सोवियत रूस की पंचवर्षीय योजना की नीति को अपनाया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि एवं उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ, इसलिए उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' भी कहा जाता है।
देश के नौजवानों को कर्मठ बनने की प्रेरणा देने के लिए उन्होंने नारा दिया-"आराम हराम है।" उनकी उपलब्धियों एवं देश के प्रति उनके योगदान को देखते हए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1955 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। उन्हें बच्चों से बहुत लगाव था तथा बच्चों में वे चाचा नेहरू के रूप में प्रसिद्ध थे, इसलिए उनका जन्मदिन 14 नवम्बर 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है। खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रुचि थी। एक देश का दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध कायम करने के लिए वर्ष 1951 में उन्होंने दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया।
नेहरू जी ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई, उन्होंने जोसेफ़ ब्रॉज टीटो और अब्दल कमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया एवं अफ्रीका में उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की। नेहरू कोरियाई युद्ध का अन्त करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते को मूर्त रूप देने जैसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ की भूमिका में रहे। पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया और लाओस जैसे कई अन्य विस्फोटक मुद्दों के समाधान में पर्दे के पीछे रहकर भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। नेहरू जी शान्ति के मसीहा थे. उन्होंने 'पंचशील सिद्धान्त' के साथ चीन की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, लेकिन वर्ष 1962 में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण कर दिया। नेहरू जी के लिए यह एक बड़ा झटका था और इसी वजह से 27 मई, 1964 को दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
नेहरू जी न केवल एक महान् राजनेता एवं वक्ता थे, बल्कि वे एक महान् लेखक भी थे. इसका प्रमाण उनके द्वारा लिखित पुस्तकें-'डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया', 'ग्लिम्पसेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री' एवं 'मेरी कहानी' हैं। इसके अतिरिक्त, अपना पत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी को नैनी जेल से लिखे गए उनके पत्रों का संकलन 'पिता का पत्र पत्री के नाम' नामक पुस्तक क रूप में प्रकाशित है।
इस पुस्तक में जिस तरह उन्होंने सामाजिक विज्ञान, सामान्य विज्ञान एवं दर्शन का वर्णन किया है, उससे पता चलता है कि वे उच्च कोटि के विद्वान् थे। उन्होंने विश्व को शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं गुटनिरपेक्षता का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त दिए। जवाहरलाल नेहरू भारत के सच्चे सपूत थे, उनका जीवन एवं उनकी विचारधाराएँ हम सब लिए अनुकरणीय हैं।
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