Paragraph on Dussehra in Hindi - दशहरा पर निबंध
दशहरा अथवा विजयदशमी भारतवर्ष का प्रमुख त्योहार है जो पूरे देश में प्रति वर्ष आशिवन शुक्ला दशमी को शौर्य साहस तथा कर्तव्य परायणता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार के कुछ सप्ताह पूर्व ही भगवान राम के जीवन से संबंधित लीलाओं का मंचन जिसे रामलीला कहते हैं शुरू हो जाती है। यूं तो प्राय: सभी छोटे - बड़े नगरों में रामलीला का मंचन किया जाता है किंतु प्रदेशों की राजधानियों तथा देश की राजधानी दिल्ली में इसका आयोजन अत्यंत भव्य तरीके से होता है। जिनमें महामहिम राष्ट्रपति., प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति श्रद्धा तथा विश्वास से भाग लेते हैं।
रामलीला में हर उम्र के कलाकार बड़े उत्साह से भगवान राम - लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता हनुमान तथा अन्य नायक के रूप धारण कर उनकी शौर्य गाथाओं को प्रभावशाली ढंग से प्रदर्शित करते हैं रामलीला में दर्शकों की भारी भीड़ जुटती है दशमी के दिन रामलीला लंका दहन तथा रावण कुंभकरण तथा मेघनाथ के प्रतीक रूप में कागज बांस - घास - फूस तथा पटाखों से भरे विशालकाय पुतले को आग लगाकर भस्म कर देने से पूर्ण होती है, जब जे पुतले जलते हैं तो उनमें भरी बारूद तथा पटाखों के कारण अनेक प्रकार के धमाके होते हैं तथा रंग - बिरंगी आतिशबाजी ओं से आकाश भर जाता है इस दृश्य को देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ एकत्रित होती है जिससे अक्सर यातायात अवरुद्ध हो जाता है।
जगह - जगह पर मेले प्रदर्शन बच्चों के झूले तथा चाट - पकौड़ी आदि की दुकानें भी लगती है। बच्चे बूढ़े सभी इन का आनंद लेते हैं जिस जगह राम लीलाओं का मंचन किया जाता है वह अब स्थाई मंच बन गए हैं जिनमें दशहरा मैदान अथवा रामलीला मैदान जा ग्राउंड कहते हैं। दशहरे के दिन लोग घरों में दीपक जलाकर दशहरे का पूजन करते हैं इस दिन घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं लोग नए वस्त्र धारण करते हैं बच्चे प्राय पटाखे चलाते हैं इस पर्व पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की खरीद तथा बिक्री होती है अनेक लोग इस त्योहार पर पूरे साल भर की जीविका का साधन जुटा लेते हैं। इसलिए यह पर्व समाज के सभी वर्गों द्वारा पूरे मान से मनाया जाता है संप्रदायिक वैमनस्य कहीं देखने में नहीं आता देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों भगवती जागरणओं की धूम रहती है। दूरदर्शन पर आने का विजयदशमी संबंधी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं इस पर्व के प्रचलन के बारे में किंवदंती है इस दिन अयोध्या के राजा राम ने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया था तथा अपनी पत्नी सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था जब यह समाचर अयोध्या पहुंचा तो सारे अयोध्यावासी अपने कामकाज छोड़कर चौपाल पर इकट्ठे होने लगे। उन्हें अब विश्वास हो गया था कि उनके प्रिय राजा राम महारानी सीता तथा भ्राता लक्ष्मण कुछ ही दिनों में 14 वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या लौटने वाले हैं।
किशोर तथा नौजवान अपने अपने ढंग से राम लक्ष्मण की वीरता का बखान कर रहे थे, बुजुर्ग लोग अपने अपने राजा को स्वागत की तैयारियों की मंत्रणा करने में लगे थे। नन्हे - नन्हे बालक कभी किसी के पीछे नहीं रहना चाहते थे उन्होंने शीघ्र ही घास फूस से रावण कुंभकर्ण तथा मेघनाथ के पुतले बना लिए थे और जापान में सबके सामने उन्हें जला रहे थे इससे वहां उपस्थित सभी लोगों का भरपूर मनोरंजन हुआ, स्त्रियां अपने अपने घरों की सफाई कर उन्हें लीपने –पोतने में जुट गई थी उसी दिन से दशहरे पर रामलीला का मंचन रावण कुंभकरण मेघनाथ के पुतलों का दहन तथा घरों एवं प्रतिष्ठानों की सफाई की परंपरा शुरू हुई जो आज भी विद्वान है।
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