Monday, August 28, 2023

Essay on Crow in Hindi | कौवा पर निबंध

Essay on Crow in Hindi | कौवा पर निबंध 
essay on crow in hindi

कौवा जंगलों और मनुष्य के निवास स्थानों में पाया जाने वाला पक्षी है। यह पक्षी ज्यादातर पेड़ों पर झुंड बनाकर रहता है। यह चालाक पक्षियों की श्रेणी में आता है। अक्सर जह घरों में रोटी के टुकड़ों को पलक झपकते ही चुरा कर ले जाता है। कभी-कभी तुझे छोटे बच्चों के हाथों से चीजें भी छीन लेता है। खतरा महसूस होने पर यह कांय - कांय की आवाज लगाना शुरू कर देते हैं। इसे बिल्ली से ज्यादा खतरा बना रहता है यह बिल्ली को देखते ही जोर जोर से आवाज निकालना शुरू कर देते हैं जिससे दूसरे कौवे भी सावधान हो जाते हैं। जंगल और पहाड़ों पर रहने वाले कौवे पूरी तरह से काले रंग के होते हैं। जब के गांवों और शहरों में रहने वाले कौवे काले और सलेटी रंग के होते हैं।

जब कौवा घर की छत पर बैठकर जोर जोर से कांय कांय करने लगे तो इसे किसी मेहमान के आने का संदेश माना जाता है। कोयल पक्षी कौवा के घोंसले में अंडे देती है और कौवे को पता ही नहीं चलता और मादा कौआ अंडो पर बैठकर उन्हें सेती है जिससे कोयल के बच्चे जन्म लेते हैं। कोयल के बच्चे भी कौआ के बच्चे की तरह होते हैं। भारत में कौवा की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती है जो अपने आकार और रंग रूप से एक दूसरे से बिल्कुल विभिन्न हैं। इनकी सभी प्रजातियों को झुंड में रहना ज्यादा पसंद होता है।

कौवा दुनिया भर में पाया जाने वाला काले और सलेटी रंग का पक्षी है। कौवे कॉउ - कॉउ की आवाज निकालते हैं। यह पक्षी आमतौर पर पेड़ों पर रहना पसंद करता है और इसे झुण्ड में देखा जाता है। इसकी पूंछ लंबी और काले रंग की होती है। जंगली कौआ की चोंच आम कौआ से मोटी होती है। यह पक्षी संसार के हर कोने में पाया जाता है। भारत में इस की 6 प्रजातियां देखने को मिलती है। इन सभी प्रजातियों का प्रजनन समय अलग अलग होता है पर जो कौवा घरों में पाया जाता है उसका प्रजनन काल अप्रैल से जून महीने तक का होता है।

कौवा रोटी और मांस दोनों खा लेता है इसलिए इसे सर्वाहारी पक्षियों की श्रेणी में रखा गया है। जंगलों में पाया जाने वाला कौवा मांस पर निर्भर रहता है वह गिद्ध जैसे पक्षियों के साथ मिलकर मांस खा कर अपना पेट भरता है जब के घरेलू कौआ रोटी , बीज या अनाज आदि खाकर अपना पेट भरता है। कौवा की उम्र - सामान्यता कौवा की उम्र 10 से 12 वर्ष तक होती है किंतु कुछ इसकी ऐसी प्रजातियां भी है जिसकी उमर इससे कुछ ज्यादा जा कुछ कम भी हो सकती है। इन का बसेरा पेड़ों पर होता है। जहां यह झुंड में मिलकर एक साथ रहते हैं।

कौआ की आवाज थोड़ी कठोर होती है जिसे यह सभी को अच्छी नहीं लगती। जैसे इसका रंग काला होता है बिल्कुल उसी प्रकार कोयल भी एक ऐसा पक्षी है जिसका रंग काला होता है किंतु उसकी बोली मीठी होती है। यह पक्षी पर्यावरण को साफ रखने में अहम भूमिका अदा करता है क्योंकी यह गंदगी को खा कर पर्यावरण को साफ रखने में मदद करता है यह मरे हुए जानवरों का मांस भी खा जाता है। इसके दो बड़े-बड़े पंख होते हैं जो उसे उड़ने में मदद करते हैं।

कौआ आमतौर पर झुंड में ही रहना पसंद करता है किसी भी तरह का खतरा महसूस होते ही यह कांय कांय करने लग जाते हैं जिससे उनके साथी कौऔं को भी खतरे की सूचना मिल जाती है। कौआ चीजों को चुराने के लिए सबसे माहिर पक्षी माना जाता है। यह तो खाने की थाली से रोटी का टुकड़ा उठाकर उड़ जाता है। जब मादा कौआ अंडे देती है तो नर इन्हीं अंडों की की रक्षा करता है। मादा और नर दोनों मिलकर अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। जब मादा कौआ अपने अंडों को सेती है तब कोयल पक्षी अपने अंडों को कौवा के अंडों में चोरी से मिला देता है जिससे कौवा को पता ही नहीं चलता कि यह कोयल के अंडे हैं। इस प्रकार से कौवा मूर्ख बन जाता है।

कौवा की औसतन आयु 10 या इससे कुछ वर्ष ज्यादा होती है। कौवा आकाश में उड़ने वाले पक्षियों में से सबसे अधिक बुद्धिमान पक्षी माना जाता है इसका मस्तिष्क काफी विकसित होता है क्योंकि इनके दिमाग की संरचना मानवों से लगभग मिलती-जुलती ही होती है। केवल अंटार्कटिका को छोड़कर यह पक्षी दुनिया के हर कोने में देखने को मिल जाता है। यह एक ऐसा पक्षी है जिसकी श्राद्ध के दिनों में पूजा की जाती है। इसका दिलचस्प तथ्य है कि यदि कौवा घर की मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करने लगे तो इससे पता चलता है के घर में कोई मेहमान आने वाला है।

यह सर्वाहारी पक्षी होते हैं जो इसे मिलता है वह वही चट कर जाते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों की देखभाल करते है। अंडे में से बच्चे निकलने के पश्चात नर और मादा दोनों मिलकर अपने बच्चों को पालते हैं। यह ‌पक्षी शहरों में भी पाए जाते हैं। कौवे की वाणी ज्यादा मीठी नहीं होती इसीलिए दे ज्यादातर लोगों को अप्रिय पक्षी लगता है। इसका रंग काला होता है जबकि इसकी गर्दन का रंग स्लेटी होता है। इसकी चोंच लंबी और काले रंग की होती है। यह आसमान में ज्यादा ऊंचाई पर नहीं उड़ता।

दुनिया भर में कौआ की 40 से भी अधिक प्रजातियां मिलती है। पुराणों में इस पक्षी को स्वर्ग का सबसे नजदीकी पक्षी माना गया है। भारत में इस पक्षी की 6 प्रजातियां पाई जाती है जो अपने आकार और रंग से एक दूसरे से अलग है।

Essay on Crow in Hindi कौवे को बड़ा ही निराला और बुद्धिमान पक्षी माना जाता है किन्तु क्या आप कौए से जुड़े कुछ मज़ेदार तथ्य जानना चाहते हैं ऐसे तथ्य जो आप नहीं जानते होंगे तो यह पोस्ट पढ़ते रहिये तो चलिए जानते हैं फिर कौआ से जुड़े तथ्य

कौए का मस्तिष्क (Brain) बाकी पक्षियों के मुकाबले काफी विकसित होता है इसीलिए कौवे को पक्षियों में काफी बुद्धिमान माना जाता है। अंटार्कटिका को छोड़कर कौवे दुनियाभर में पाए जाते हैं। श्राद्ध के महीने में कौवे की पूजा की जाती है क्योंकि इस महीने कौवे को भोजन कराना पितरों को भोजन कराने के समान समझा जाता है क्योंकि माना गया है के कौवे ने ही अमृत का पान किया था।

अक्सर माना जाता है के जब कौवा घर की मुंडेर पर बैठकर काऊं काऊं करे तो यह किसी मेहमान के आने का संदेश देता है। कौए (Crow) सर्वाहारी होते हैं जो भी मिले वह उसे चट कर जाते हैं। जब मादा कौवा अंडे देती है तो नर कौवा अंडों की देखभाल करता है।मादा कौवा और नर कौवा दोनों एक साथ अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। भारत में कौए की छे प्रजातियां पायी जाती हैं। ऐसा माना जाता है के कौए को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पहले ही पता चल जाता है।

कौए ज्यादातर झुंडों और पेड़ों पर रहना पसंद करते हैं। जंगली कौवे की चोंच मोटी होती है। कौए (Crow) की उम्र 10 से 15 वषों तक होती है वहीँ ऑस्ट्रेलियन कौवा 22 वर्षों तक जीवित रहता है। सभी कौवों की प्रजातियों का प्रजनन काल अलग अलग होता है किन्तु घरेलू कौवे का प्रजनन अप्रैल से जून महीने तक चलता है। कहते हैं के जब कौए की मौत हो जाती है तो सेंकडों कौए इकठे होकर उसका मातम मनाते हैं। कौए को जब रोटी का एक भी टुकड़ा मिल जाए तो यह अपने साथियों के साथ मिलकर खाता है।

आपको शायद ना पता हो कौवा कोयल के अंडे सेता है और उन्हें अपने बच्चे समझकर पालता भी है। जंगली कौवा लगभग मांसहारी ही होता है यह गिद्ध जैसे पक्षियों के साथ मिलकर मांस खाता है।

 

Essay on Crow in Hindi - 2


कौवा संसारभरमें हर जगह पाया जाने वाला पक्षी है। कौवा का रंग काला होता है। आसमान में उड़ने वाले पक्षियों में कौवे को सबसे बुद्धिमान माना जाता है। श्राद्ध के महीने में कौवों की पूजा की जाती है। घर की छत पर अगर कौआ बोलने लगे तो किसी मेहमान के आने का संदेश माना जाता है। कौए कांउ -कांउ की आवाज़ से सबको प्रभावित करता है।

भारत में कौए की छे प्रजातियां पायी जाती हैं। नर कौवा और मादा कौवा दोनों मिलकर अपने बच्चों को पालते हैं। इसी तरह जब मादा कौवा अंडे देती है तो नर कौवा उसकी देखभाल करता है। पुराने समयों में तो कौवे गाँवों में बच्चों की थाली में से रोटी उठाकर ले जाते थे।

कौए ज्यादातर झुंडों और पेड़ों पर रहना पसंद करते हैं। जंगली कौवे की चोंच मोटी होती है। कौए की ज्यादातर उम्र 20 वर्ष तक होती है। । ऐसा माना जाता है के कौवा को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पहले ही पता चल जाता है।

भारत की कई जगहों पर काला कौवा बहुत कम दिखाई देता है इसकी मुख्य वजह बिगड़ रहा पर्यावरण इन पक्षियों को खत्म कर रहा है। जिस कारण श्राद्ध के दिनों में यह पक्षी तलाशने से भी नहीं मिल पा रहे हैं। जिस कारण इन दिनों में लोग गाय या अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर श्राद्ध मनाते हैं। जंगली कौवा का पूरा शरीर काले रंग का होता है जब के घरेलू कौए के गले में एक सलेटी रंग की पट्टी सी बनी होती है। इसकी चोंच लंबी और मोटी होती है जिससे वह अपना शिकार करता है। जह दूसरे पक्षियों की बजाय ज्यादा बुद्धिमान जानवर माने जाते हैं। जे पलक झपकते ही चीज को उठा लेते हैं। इनकी याददाश्त तो बड़ी ही लाजवाब होती है यह अपने लिए सुरक्षित रखे गए भोजन को कभी नहीं भूलता जिसे यह भूख लगने पर खाता है। इनकी चोंच मोटी और काली रंग की होती है। इस पक्षी को पर बहुत सारी प्रेरक कहानियां बनी है जिससे हमें शिक्षा हासिल होती है।
 
कौवा एक बुद्धिमान और चलाक पक्षियों में से गिना जाता है जिसके शरीर का रंग काला होता है। संसार भर में इसकी अनेक प्रजातियां पाई जाती है। जो एक दूसरे से अलग होती है। इनका मुख्य आहार सब्जियां , फल और अनाज आदि होता है इसके अलावा जो गिद्धों की तरह आज भी खाता है जिसे सर्वाहारी भी कहा जाता है।

यह अपनी कॉउ कॉउ की आवाज से सबको तंग करता है। वर्तमान में इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है यह आज संकटग्रस्त पंछी बन चुका है। पहले इनकी संख्या झुंड में देखी जाती थी किंतु आज ये पक्षी कहीं भी देखने को नहीं मिल पाता। इन की मुख्य वजह लगातार पेड़ों की कटाई बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण किसानों के द्वारा खेतों में इस्तेमाल किए जाने वालु कीटनाशक दवाइयां , यह सब कारण इसे हमसे दूर कर रहे हैं।

काले रंग का कौवा ज्यादातर जंगलों में रहता है वह लगभग मांसाहारी होते हैं जो गिद्धों की तरह जंगलों में रहकर मांस ढूंढकर जा फिर छोटे पक्षियों को खा जाता है। इनकी उड़ान भी बहुत ऊंची और तेज होती है यह शिकार करने में बहुत माहिर होते हैं। यह जंगल में रहने वाले छोटे-छोटे पक्षियों के बच्चों को अपना शिकार बनाता है। यह दिन भर खाने की तलाश में भटकते रहते हैं। जंगलों में यह पक्षी झुंड बनाकर रहते हैं।



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