Wednesday, January 16, 2019

Essay on Pongal in Hindi | पोंगल पर निबंध

Essay on Pongal in Hindi | पोंगल पर निबंध

Essay on Pongal in Hindi | पोंगल पर निबंध 


Essay on Pongal in Hindi | पोंगल पर निबंध

Essay on Pongal in Hindi Language पोंगल दक्षिण भारत मुख्य रूप से तमिलनाडु का सबसे लोकप्रिय और प्रमुख त्यौहार है। तमिल भाषा में पोंगल का अर्थ होता है विप्लव व उफान इस त्योहार को पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन सूर्य की पूजा होती है और सूर्य को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे अच्छी तरह उबाला जाता है। दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है पोंगल का त्यौहार जहां उत्तर भारत में मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है वहीं दक्षिण भारत में खासतौर पर तमिलनाडु में हिंदू लोग धूमधाम से पोंगल का त्यौहार बनाते हैं लगभग 4 दिनों तक चलने वाला यह पर्व मुख्य रूप से खेती का पर्व होता है। इश्क त्यौहार के दौरान सूर्य की उपासना होती है पोंगल सूरज के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का प्रतीक होता है। तमिलनाडु मे लोग फसल के इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते है।

पारंपरिक रूप से पोंगल का त्यौहार धान की फसल को घर लाने की खुशी प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है । पोंगल तमिल महीने की 1 तारीख को यानि  जनवरी के मध्य में मनाया जाता है पोंगल से पहले घरों की साफ-सफाई की जाती है।
Essay on Pongal in Hindi | पोंगल पर निबंध

यह पर्व 4 दिन तक चलता है और हर दिन पोंगल का अलग नाम होता है पहले पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं भोगी पोंगल पर पुरानी वस्तुओं को जला देते हैं यह बुराइयों के अंत और ईश्वर के प्रति सम्मान को दर्शाता है। इस दिन अग्नि के इर्द-गिर्द  ढोल बजाते हैं ढोल को तमिल में बुग्गी कहते हैं। भैंस के सींग से बना बोगी ऋतु के राजा इंद्र को समर्पित होता है इंद्र नई ऋतु के आगमन की घोषणा करते हैं।

Essay on Pongal in Hindi

दूसरे पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं यह भगवान सूर्य को अर्पित होता है इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नए धान से तैयार चावल , मूंग दाल और गुड़ से बनती है पोंगल तैयार होने के पश्चात सूरज देव की विशेष पूजा की जाती है उन्हें प्रसाद रूप में पोंगल व  गन्ना अर्पित किया जाता है और अच्छी फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

तीसरे पोंगल को मट्टू पोंगल कहा जाता है तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने को कहा और तब से वह पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की मदद कर रहा है इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं। उनके सिंह ऊपर तेल लगाते हैं और विभिन्न प्रकार से उन्हें सजाते हैं बैलों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है।

बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़े की भी पूजा की जाती हैं जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

4 दिनों के इस पर्व  के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है जिसे लोग तिरुवल्लर के नाम से भी पुकारते हैं। इस दिन घरों को सजाया जाता है आम और नारियल के पत्तों से दरवाजों पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन  घर के मुख्य द्वार पर कोलम अर्थात रंगोली बनाती है। इस दिन पोंगल का पर्व  बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोग नए वस्त्र पहनते हैं और दूसरों के जहां पोंगल और मिठाई भी देते हैं इस पोंगल के दिन ही विविध प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है जो काफी प्रसिद्ध है रात्रि के समय लोग सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं इस प्रकार हर वर्ष यह ख़ास पर्व हर्ष और उल्लास का पर्व आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

Friday, January 11, 2019

Essay on Lohri in Hindi | लोहड़ी पर निबंध

Essay on Lohri in Hindi | लोहड़ी पर निबंध


Essay on Lohri in Hindi | लोहड़ी पर निबंध 


लोहड़ी नाम 'लोही' शब्द से बना है जिसका अर्थ है फ़सलों का आना और बारिश का आना। लोहड़ी पर्व फ़सलों का बढना तथा कई इतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है। लोहड़ी का पर्व ख़ास तौर से पंजाब प्रांत में बड़ी ही धूम -धाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाया जाता है। यहां कई दिन पूर्व ही लोहड़ी को मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पुराने समय में लडके -लडकियां इकट्ठे मिलकर घर -घर गीत गाते हुए लोहड़ी मांगते थे, घर के लोग उन्हें रेवड़ियां और मूंगफली आदि देकर विदा करते थे। लोहड़ी से कई दिन पूर्व ही बाज़ारों में रौनक लगनी शुरू हो जाती है हर तरफ रेवड़ियां, गचक और मूंगफली और सजावट आदि के समान की दुकाने सजने लगती हैं। लोहड़ी वाले दिन लोग अपने घर में साग और मक्की की रोटी बनाते हैं और गन्ने के रस की खीर बनाना भी शुभ माना गया है।
पंजाब में लोहड़ी के दिन कुँवारी लडकियां नए –नए कपड़े पहनकर लोहड़ी मांगने जाती हैं और यह गीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं

"दे माई लोहड़ी , तेरी जीवे जोड़ी"

इसके इलावा गली –मुहल्ले के छोटे –छोटे बच्चे घर –घर जाकर उपले मांगते हैं और बच्चे भी लोहड़ी मांगने के लिए गीत गाते हैं जैसे

हिलना भी हिलना, लकड़ी लेकर ही हिलना
हिलना भी हिलना, पाथी लेकर हिलना 


जैसे लोहड़ी से संबंधित ओर भी बहुत सारे गीत गाकर घर –घर लोहड़ी मांगी जाती थी।
लोहड़ी के दिन सुबह से ही लोग लोहड़ी की तैयारियों में जुट जाते हैं। लोहड़ी की रात्रि को सूरज छिपने के पश्चात लोग खुली जगह में आग की धूनी जलाते हैं यहां आस -पास के सभी लोग इकट्ठे हो जाते हैं। लडकियां लोहड़ी के गीत गाती हैं। आग में लोग रेवड़ियां, तिल और गुड आदि का हवन करते हैं। इसके पश्चात लोग अलाव के चारों तरफ बैठकर आग सेकते हैं।

लोहड़ी क्यों मनायी जाती है ?

एक गरीब ब्राह्मण की बहुत ही सुंदर दो लडकियां थी जिनका नाम था सुंदरी और मुंदरी। उन दोनों की सगाई पास के ही एक गाँव में कर दी गयी। किन्तु उस क्षेत्र के हाकिम की बुरी दृष्टि उन लडकियों की सुन्दरता पर पड़ी और वह चाहता था के उन दोनों लडकियों का निगाह उसके साथ हो जाए किन्तु उसके पिता को यह सब मंजूर नहीं था, उनका पिता बहुत परेशान हुआ एक वह जंगल से गुजर रहा था वहां उसे दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू मिला जो गरीबों का मददगार था उसने ब्राहमण की बात को सुना और उसकी मदद करने का वचन  किया। इस तरह उसने उस हाकिम के बिना किसी डर के उन दोनों लडकियों की शादी करवाई उस वक्त दुल्ला भट्टी के पास उन लडकियों को देने के लिए कुछ नहीं था सिवाए शक्कर के इसीलिए उसने शगन के रूप में दोनों लडकियों की झोली में शेर शक्कर डाल दी और उन्हें ख़ुशी -ख़ुशी वहां से विदा किया। उसी दिन से लोहड़ी का यह त्यौहार मनाया जाने लगा।

लोहड़ी का पौराणिक गीत :

सुनद्रिये मुंदरिये हो , तेरा कौन बेचारा हो ,
दुल्ला भट्टी बाला हो , दुल्ले दी धी वियाही हो ,
शेर शक्कर पायी हो , कुड़ी दा सालू पाटा हो ,
कुड़ी दा जीवे चाचा हो , चाचा चूरी कुट्टी हो
नम्बरदार लुटी हो , गिन -गिन माले लाये हो ,
एक माल्ला रह गया , सिपाही फड़ के ले गया ,


Sunday, January 6, 2019

Essay on Monkey in Hindi | बन्दर पर निबंध

Essay on Monkey in Hindi | बन्दर पर निबंध


Essay on Monkey in Hindi
Essay on Monkey in Hindi | बन्दर पर निबंध 
बंदर का शरारती स्वभाव का जानवर होता है इसे उछलना कूदना बेहद पसंद होता है अक्सर आपने इन्हें एक पेड़ से दूसरे पेड़ ऊपर उछलते कूदते हुए देखा होगा यह पलक झपकते ही एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर चले जाते हैं। संसार में दो तरह के बंदर पाए जाते हैं एक बंदर जो एशिया में पाए जाते हैं और दूसरे बन्दर जो दक्षिण अफ्रीका में पाए  जाते हैं। बंदरों को ज्यादातर पेड़ों , पहाड़ो घास के मैदानों में और घरों की छतों पर रहना बेहद पसंद होता है। इसके अलावा जंगलों और चिड़ियाघर में भी विभिन्न प्रकार के बंदर देखने को मिल जाते हैं। एशिया में पाए जाने वाले बंदरों के 32 दांत होते हैं जबकि दक्षिण अफ़्रीका के बंदरों में 36 दांत होते हैं। बंदर एक उछल कूद करने वाला जानवर होता है वह अपना भोजन एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर उछलते और कूदते हुए ही ढूंढ लेता है इसे पेड़ों पर रहना अधिक पसंद होता है क्योंकि यह वृक्षों पर खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।

बंदर का जीवन काल :
बंदर की औसतन आयु 15 से लेकर 30 वर्षों तक होती है किंतु इन की कुछ ऐसी प्रजातियां भी है जिनकी उम्र इससे कुछ ज्यादा जा कम भी हो सकती है। बंदर को बुद्धिमान जीवो की श्रेणी में भी रखा गया है क्योंकि बंदर ही इकलौता एक ऐसा जीव है जो केले को उसका छिलका उतार कर ही खाता है। इसके अलावा बंदर नकल उतारने में बड़े ही लाजवाब होते है वह किसी भी चीज की नकल बड़ी आसानी से कर लेते हैं इसलिए इन्हें थोड़ा प्रशिक्षण देकर किसी भी चीज की सिखलाई दी जा सकती है।

बंदर दूसरे जानवरों की तरह चार पैरों वाला जीव होता है यह अपने आगे की टांगों का इस्तेमाल मानव की तरह हाथों की तरह करता है। बंदर के पूरे शरीर पर हल्के भूरे रंग के घने बाल होते हैं , बंदर की एक लंबी मुड़ी हुई पूंछ होती है यह पूंछ बंदर का बैलेंस बनाए रखने में मदद करती है। बंदर कई तरह की आवाजें निकाल सकते हैं इसलिए एक बंदर दूसरे बंदर से संपर्क का बनाने के लिए कई प्रकार की आवाजों और इशारों का इस्तेमाल करते हैं। वह अलग अलग स्थिति में अलग अलग इशारों और आवाजों का इस्तेमाल करते हैं। बंदर पानी में बहुत अच्छी तरह से देख सकते हैं किंतु इन्हें पानी में रहना पसंद नहीं होता। बंदरों को साफ़ सुथरा रहना बहुत पसंद होता है अक्सर आपने बंदरों को एक दुसरे की सफाई करते हुए अवश्य देखा होगा।

बंदर का भोजन : बंदर का मुख्य आहार फल फूल के आलावा  रेंगने वाले कीड़े होते हैं बंदर मुख्य रूप से शाकाहारी जानवर ही होते हैं किंतु उनकी कुछ ऐसी प्रजाति है अभी है जो मांसाहारी होती है और सर्वाहारी होती है। बंदर भी मानव की तरह परिवार बनाकर रहते हैं उनका भी अपना ही एक झुण्ड  होता है इस झुण्ड का एक मुखिया बंदर होता है जो पूरे झुंड की अगुवाई करता है। मानव का विकास बंदरों से ही हुआ माना जाता है इसलिए मनुष्य और बंदरों का आप समय डीएनए 98 फ़ीसदी बंदरों से मिलता जुलता है।

बंदर एक बुद्धिमान जानवर तो होता ही है इसलिए कुछ लोग इन्हें थोड़ा प्रशिक्षण देकर बहुत सारा पैसा भी कमाते हैं आपने अक्सर गांव , मोहल्ले में कई मदारी बंदरों का खेल दिखाते हुए देखे ही होंगे इसके अलावा आप सर्कस में भी बंदरों के अजीब खेल देख सकते हैं इसलिए यह मनुष्य के बहुत काम आता है। किंतु हमें बंदरों से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि यह चिड़चिड़ा स्वभाव के होते हैं इन्हें छूने पर जे आप को काट भी सकते हैं इसके अलावा बंदर लोगों के हाथों से किसी भी तरह की खाने की सामग्री को छीनकर भाग जाते हैं। अंग्रेजी भाषा में बंदरों के समूह को ट्रूप कहा जाता है। चिंपांजी बंदरों की ही एक किस्म है यह आम बंदरों से बड़े होते हैं यह ज्यादातर जंगलों में ही पाए जाते हैं।

बंदरों की प्रजातियां : दुनिया भर में ढाई सौ से भी ज्यादा बंदरों की प्रजातियां पाई जाती है जो अपने आकार रंग और रूप से एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न होती है। इनमें से बंदरों की कुछ प्रजातियां खत्म हो चुकी है।

प्रजनन काल
नर बंदर मादा बंदर से संभोग करने के लिए सबसे प्रथम अपने हाथों पर पेशाब कर फिर दोनों हाथों को शरीर पर रगड़ लेते हैं। इसे मादा बंदर नर बंदर से प्रभावित हो जाती है। मादा बंदर का प्रजनन काल 135 से लेकर 237 दिनों तक का होता है। बंदर के बच्चे तीन से पांच महीनों तक अपनी माँ का दूध पीते हैं।

बन्दर एक नटखट जीव होता है जो अपनी नटखट शरारतों से दुसरे जीवों और मानव को भी तंग करता है वह आसानी से एक वृक्ष से दुसरे वृक्ष पर कूद जाते हैं और इन्हें कोई चोट भी नहीं लगती है, दुनिया में इतना छोटा बन्दर भी देखा गया है जिसका वजन लगभग सौ ग्राम के आसपास था और उस बन्दर की लम्बाई सिर्फ चार इंच ही थी इसके इलावा बंदरों के दांत बड़े ही तेज़ और नुकीले होते हैं जिससे यह किसी भी चीज़ की चीरफाड़ बड़ी ही आसानी से कर लेते हैं इनके दो दांत दुसरे दांतों से बड़े और तीखे होते हैं बन्दर चलता तो अपनी चार टांगों पर है किन्तु यह किसी चीज़ को पकड़ने या फिर अपना भोजन खाने के लिए अपनी अगली टांगों का प्रयोग करता है , ज्यादातर बन्दर जंगलों में रहते हैं किन्तु जब इन्हें जंगलों में भोजन न मिले तो यह खाने की तलाश में गाँवों जा फिर शहरों में घुस जाते हैं यहां आकर यह लोगों की चीजों को चुराना शुरू कर देते हैं और लोगों को तंग भी करते हैं हर साल 14 दिसम्बर वाले दिन पूरे विश्वभर में मंकी दिवस मनाया जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा बन्दर जिसका नाम मन्द्रिल्ल है जिसका वजन 36 किलोग्राम था और लम्बाई साढ़े तीन फीट के आसपास थी बन्दर से जुडी एक रोचक बात यह है के मानव की तरह इनका भी अपना फिंगरप्रिंट होता है। इसीलिए यह जानवर अपनी इन्ही गुणों के कारण एक शरारती और बुद्धिमान जानवर होता है जो अपनी नटखट शरारतों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है।

10 Lines on Monkey in Hindi

10 Lines on Monkey in Hindi

10 Lines on Monkey in Hindi


10 Lines on Monkey in Hindi


बन्दर को मानव का पूर्वज माना गया है 98 फीसदी मानव और बन्दर का डीएनए आपस में मिलता जुलता है .

2.   मंकी को गिनती करना सिखाया जा सकता है .

3.   बंदरों के समूह को अंग्रेजी भाषा में ट्रूप कहा जाता है .

4.   बन्दर ज्यादातर वृक्षों पर ही रहते हैं .

5.   यह एक बुद्धिमान जानवर है जो केला हमेशा छीलकर खाता है .

6.   एक सामन्य बन्दर की आयु 15 से लेकर 25 वर्षों तक होती है .

7.   बन्दर अपने अगले पैरों को हाथ की तरह इस्तेमाल करता है .

8.   मंकी नकल उतारने में बहुत माहिर होते हैं .

9.   यह झुण्ड में रहना पसंद करते हैं इस झुण्ड का एक मुखिया भी होता है

10.     संसारभर में बंदरों की सैंकड़ों प्रजातियाँ पायी जाती हैं

11.  कुछ बंदरों की प्रजातियां शाकाहारी जबकि कुछ मांसहारी होती हैं

12.   बन्दर एक एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर आसानी से कूद सकते हैं


10 Lines on Monkey in Hindi



10 Lines on Monkey in Hindi

Friday, January 4, 2019

Poem on Bharat in Hindi | भारत पर कविता

Poem on Bharat in Hindi | भारत पर कविता

Poem on Bharat in Hindi | भारत पर कविता 

देश हमारा भारत है 
जिसका में वंदन करता हूं 
आप सभी का 
अपनी कविता में 
हार्दिक अभिनंदन करता हूं 
देख के भारत की पीड़ा को 
लगता है कुरुक्षेत्र बनू 
जहां भस्म हो पापी सारे 
में क्रोधी त्रिनेत्र बनूं 
यहां रेप, हिंसा और दंगा 
कुछ मानव का चंदन हैं 
गूंज रहा 
हर ओर हमेशा 
लाचारों का क्रन्द्र है 
सत्ता लोभी नेताओं के 
हाथों में सरताज हुआ 
सब नेताओं के हाथ धुले हैं 
हिंसा के साबुनों से 
जहां न्याय देने वाले खुद 
न्याय मांगते मग -मग में 
क्यों फिर देश ठोकर न खाए 
प्रगति राह के पग -पग में 
देश के वीर शहीदों के 
चरणों का पावन धूल बनूं 
देख के भारत की पीड़ा को 
खुशबु से भरा फूल बनूं 

: उमाकांत सुर्याशी

Poem on India in Hindi -


Poem on banyan tree in Hindi | बरगद पर कविता

Poem on banyan tree in Hindi | बरगद पर कविता


Poem on banyan tree in Hindi | बरगद पर कविता 

Poem on banyan tree in Hindi


चलो सुस्ता लें
बरगद की छांव में
दादा ने ही लगाई
थी अपने ही गाँव में
वे कहते थे हमें
जब छोटा था तब
लाया था बरगद को
जंगल से निकाल कर
मां ने गुस्से में
खूब डांट लगाई थी

में खूब रोया था
में यह सब देखकर
तनिक न रह पायी थी
वह भी रोते -रोते बरगद को

घर के पीछे लगवाई थी
कड़ी मेहनत के बाद
बड़ा हो गया बरगद
धुप की लाल शोलों से
बचाता है अब वह बरगद
बरगद की छांव में
अब लोग  सुस्ताते हैं
शुद्ध -शुद्ध हवाओं से
काम होता है अब रोग
दादा तो अब नहीं रहे
रहा बरगद ही निशानी
जाते -जाते दादा जी ने
सुनाई हमको यह कहानी।

: मुनटुन राज

Poem on Forest in Hindi | जंगल पर कविता

Poem on Forest in Hindi | जंगल पर कविता

Poem on Forest in Hindi | जंगल पर कविता 


Poem on Forest in Hindi


में अपने भीतर छोड़ आयी 
एक पूरा भरा जंगल 
जहां तहां रोड़ा बनते 
वृक्ष विस्तार लिए 
कटे ठूंठ 

सूखे पत्तों का शोर 
शिकारी की मचान 
रोबदार शब्दों की चुभन 
जड़ों का रोना 

रोम विहीन त्वचा पर 
अमर बेल सा 
नहीं लिपटना अब 
जंगल थे 
जंगल ही रह गए तुम 


मैं कोई वन देवी नहीं 
हाड -मांस का टुकड़ा भी नहीं 
एक ह्रदय पिंड हूं 
जो सिर्फ साँसे ही नहीं भर्ती 
हंस भी सकती है 
नाच भी सकती है 
चीख भी सकती है 
और अब गुर्रा भी सकती है। 

Thanks : मीता दास 

Thursday, January 3, 2019

Short Poem on Dahej Pratha in Hindi | दहेज़ प्रथा पर निबंध

Short Poem on Dahej Pratha in Hindi | दहेज़ प्रथा पर निबंध

Short Poem on Dahej Pratha in Hindi | दहेज़ प्रथा पर निबंध

नहीं रहेंगे अब वे दिन 
मिटेगी जल्द दहेज के दिन 
अपने घर को भरने की खातिर 
दुसरे के घर को उजाड़ना 
कहां बहादुरी है 

एक बेटी के पिता की जिंदगी 
पैसे जोड़ते हुए गुजर जाती है 
दहेज़ प्रथा हमें अंदर तक तडपाती है 

उठ रही है आवाज़ 
हटेगी यह दहेज़ प्रथा 
आयेगी हमारी खुशियों को बारी 
फिर न लगेगी बेटियां 
किसी बापू को भारी 
अब हवा से जमीन तक 
बेटियां उड़ रहीं हैं 
आजादी की ओर बढ़ रहीं है 
- अंशु अवनिजा 




Short Poem on My School in Hindi | मेरा स्कूल पर कविता

Short Poem on My School in Hindi | मेरा स्कूल पर कविता

Short Poem on My School in Hindi | मेरा स्कूल पर कविता 
Short Poem on My School in Hindi


यह मेरा प्यारा स्कूल 
नहीं सकता में इसको भूल 
मां ने मुझको जन्म दिया 
और दिया ढेर सारा प्यार 
स्कूल ने 
मेरा ज्ञान बढ़ाकर 
मेरा जीवन दिया संवार 
खूब खेलो और पढ़ो तुम 
कहती यह टीचर हमारी 

बड़े होकर प्रण तुम करना 
देश की सेवा करेंगे मिलकर 
कोई वकील कोई देश का नेता 
कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर होगा 

भारत विश्व में बनेगा अव्वल 
हर कोई जब शिक्षित होगा 
यह मेरा प्यारा स्कूल
नहीं सकता में इसको भूल 

देवेंद्र राज सुथार 
Essay on New Year in Hindi | नव वर्ष पर निबंध

Essay on New Year in Hindi | नव वर्ष पर निबंध


Essay on New Year in Hindi : नव वर्ष पर निबंध 

नववर्ष की शुरुआत का दिन उसे माना गया है जहां पर पृथ्वी अपने सोलर पथ पर सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेती है इसके बाद 1 जनवरी से वह नई शुरुआत करती है इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में इसे नए साल की शुरुआत माना गया है अगर पृथ्वी के सोलर रूट को देखा जाए तो ऐसा अंडाकार पथ पर कौन सी जगह जाकर पृथ्वी का एक चक्कर पूरा माना जाए यह तय करना भी कोई आसान काम नहीं था इसलिए इसे निर्धारित करने के लिए सिर्फ विज्ञान का सहारा नहीं लिया गया बल्कि लोगों की धार्मिक मान्यताओं तत्कालीन शासकों की इच्छा शक्ति मौसम में नियमित तौर पर होने वाले बदलाव और एस्ट्रोनॉमी को भी शामिल किया गया है यही वजह रही कि जनवरी को साल की शुरुआत माना गया।

इस तरह माना गया है पहला दिन 
वर्ष 1570 के दशक में पॉप ग्रेगरी ग्रोगोरियन कैलेंडर को लेकर आए जिसमें उन्होंने जनवरी को साल का पहला महीना माना था तब से एक जनवरी को साल का पहला दिन मनाने का चलन शुरू हुआ हालांकि इंग्लैंड ने इस कैलेंडर को वर्ष 1772 तक मान्यता प्रदान नहीं की थी वर्षा 1772 तक इंग्लैंड ही नहीं अमेरिकी देशों में भी 25 मार्च को साल का पहला दिन मानते थे और इसी दिन को नए साल की शुरुआत के रूप में सेलिब्रेट किया जाता था।

भारतीय कैलेंडर के अनुसार भी नए साल की शुरुआत इसी समय के आसपास होती है ग्रोगोरियन कैलेंडर से पहले जूलियन कैलेंडर का चलन था इस कैलेंडर में लीप ईयर को शामिल नहीं किया जाता था इसलिए इसे सुधारते हुए बाद में ग्रोगोरियन कैलेंडर लाया गया।

इसे कैसे मिली मान्यता
जिन देशों ने इतने सालों तक ग्रोगोरियन कैलेंडर को मान्यता नहीं दी थी उन्होंने वर्ष 1752 मैं जब इसे शुरू किया था वही से इसके साथ अपनी डेट्स को मैच करने के लिए सितंबर माह में से पूरे 11 दिन घटाने पड़े थे लेकिन इससे पहले भी जूलियन कैलेंडर को मानने वाले नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से ही करते थे जिसकी शुरुआत इस से 45 साल पहले हुई थी लेकिन इसके कुछ ही समय बाद रोमन शासकों जूलियाना सीजर को लगने लगा के जूलियन कैलेंडर सही तरीके से नहीं बना है और इसमें सुधार की सख्त जरूरत है जिसके बाद ग्रोग्रियन कैलेंडर अस्तित्व में आया।

हिंदू कैलेंडर में चैत्र नया साल
हिंदू कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र के महीने में मानी जाती है जो मार्च या अप्रैल के महीने में है।

लोक मान्यताएं और अन्य धार्मिक कैलेंडर:
रोमन जब लुनिक कैलेंडर इस्तेमाल करते थे तब साल की शुरुआत मार्च से होती थी उसी समय एक नए गवर्नर की भर्ती हुई लेकिन वर्ष 153 तक उसने पदभार संभाला ही नहीं और 1 जनवरी को उसने अपना पदभार ले लिया माना जाता है इसी समय से जनवरी में नए साल की शुरुआत है इसके अलावा इसके पीछे धार्मिक कहानियां भी प्रचलित है दरअसल जनवरी में जानूस नाम का एक त्यौहार मनाया जाता है जानूस जिसका अर्थ गॉड ऑफ गेट से या शुरुआत है तो इस लिहाज से जनवरी को साल की शुरुआत का सही समय माना गया है।

"Happy new year essay" 500 words